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________________ EAKIROKARKanpuria-... ( 16 ) शरीर जिन तत्वों से बनता है वे तत्त्व, शरीर के सूक्ष्म . स्थूल श्रादि प्रकार, उसकी रचना, उसका वृद्धि क्रम ह्रास क्रम र आदि अनेक अंशों को लेकर शरीर का विचार शरीर शास्त्र में / किया जाता है, इसी से उस शास्त्र का वास्तविक गौरव है। वह / गौरष कर्म-शास्त्र को भी प्राप्त है। क्योंकि उसमें भी प्रसंगवश ऐसी अनेक वातों का वर्णन किया गया है जो कि शरीर से / सम्बन्ध रखती हैं / शरीर सम्बन्धिनी ये बातें पुरातन पद्धति से कही हुई हैं सही परन्तु इस से उनका महत्त्व कम नहीं / / क्योंकि सभी वर्णन सदा नये नहीं रहते / आज जो विषय नया दिखाई देता है वह थोड़े दिनों के वाद पुराना हो जायगा। वस्तुतः काल के वीतने से किसी में पुरानापन नहीं आता। पुरानापन पाता है उसका विचार न करने से / सामयिक पद्धति से विचार करने पर पुरातन शोधों में भी नवीनता सी आ जाती है, इसलिये अति पुरातन कर्म शास्त्र में भी शरीर की बनावट, उसके प्रकार, उसकी मजबूती और उसके कारण भूत तत्त्वों पर जो कुछ थोड़े यहुत विचार पाये जाते है, वे उस शास्त्र की यथार्थ महत्ता के चिह्न हैं। इसी प्रकार कर्म शास्त्र में भाषा के सम्बन्ध में तथा इन्द्रियों के सम्बन्ध में भी मनोरंजक व विचारणीय चर्चा मिलती है। भाषा किस तत्व से बनती है ? उसके वनने में कितना समय लगता है ? उसकी रचना के लिये अपनी वीर्य शक्ति का प्रयोग श्रात्मा किस तरह और किस साधन द्वारा करता है ? भाषा की सत्यता तथा असत्यता का आधार क्या है ? कौन कौन प्राणीभापायोल सकते हैं ? किस किस जाति के प्राणी में किम A किस प्रकार की भाषा बोलने की शक्ति है ? इत्यादि अनेक EmmarA hem .mar -.-----.---. CELEXICORIER
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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