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________________ म ELE : -MEExt - पुरमनी रखते उनकी मित्रता औरत के सि की तय / सरा सी देर में पदस सामगी। सन महार बदमाशों से करते कि सोमादमी के सामने कपरी रिस से हसते। मगर अन्दर ही मदर दिस " में मानी पुश्मनी रमते। पुस्मम अगर नम्रता पूर्वक मुषार बातचीत करे वो मी उसका पिश्वास न करो क्योकिकमान अप मुझठी - तो पा और कानी (परावी की ही पेशीनगोई करती / भनिए की भी मपिम्पवाही करती। पुस्मम अमर बाय बोदेवप मी उसका विश्वास म करो मुमकिनकि उसकेायों कोई पियार पाहा 1 और न तुम उसके मांस पहाने पर ही कर पकीन नामो। - 10 अगर दुश्मन तुम से दोस्ती करना चाहेभीर परि तुम अपने पुस्मन से प्रमी गुमा पैर नही कर सभव होता उसके सामने जादिरी दोस्ती का वर्णष करो मगर दिल से रसे सदा पूर लो। पतामह FCICEJa- क्या तुम जानना चाहते हो कि मुर्मवा किसे करते है! मोदीजसामायकरसको फक पेमा भीर हानिकारक - पदार्थ को पकड़ रममा-बस पदी मूता। २मर्स मनुप्प अपने कम्पको भूम यता पान जवादिपात भीर सन्त बात निकामता सकिसी तरा शर्म मौरपा का हयात नहीं होता मोरपिसी बात का पसम्म करता है।
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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