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________________ kammu-mmmxmxonomyKAM KAnam-n KXICAXXRACETRAXCRAK.. HORAKARAATXMARRIMERIORAammarAA-... - 10 पाकोसाफ़ लोगों के साथ बड़े शौक से दोस्ती करो, तुम्हारे अयोग्य है उनका साथ छोड़ दो, इस के लिये चाहे तुम्हें कुछ भेंट भी देनी पड़े। झूठी मित्रता 1 उन कमबख्त नालायकों से होशियार रहो कि जो अपने | लाभ के लिये तुम्हारे पैरों पर पड़ने के लिये तय्यार है, मगर / जव तुम से उनका कुछ मतलव न निकलेगा तो वे तुम्हें छोड़ 1 देंगे / भला ऐसों की दोस्ती रहे या न रहे इस से क्या आता जाता है। तु 2 कुछ आदमी उस अक्खड़ घोड़े की तरह होते है कि जो युद्धक्षेत्र में अपने सवार को गिरा कर भाग जाता है। ऐसे लोगों से दोस्ती रखने की बनिस्वत तो अकेले रहना हजार दर्जे बेहतर है। 3 बुद्धिमानों की दुश्मनी भी बेवकूफों की दोस्ती से हज़ार // दर्जे वेहतर है, और खुशामदी और मतलवी लोगों की दोस्ती से दुश्मनों को घृणा सैकड़ों दर्जे अच्छी है। 4 देखो जो लोग यह सोचते हैं कि हमें उस दोस्त से . कितना मिलेगा वे उसी दर्जे के लोग हैं कि जिन में चोरों और वाज़ाक औरतों की गिनती है। ५खवरदार ! उन लोगों से जरा भी दोस्ती न करना कि जो कमरे में बैठ कर तो मीठी मीठी बातें करते है मगर बाहर श्राम मजलिस में निन्दा करते हैं। 6 जो लोग ऊपर से तो दोस्ती रखते हैं मगर दिल में ENT RYwww.
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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