SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ +PREETTE SIRF रमीसा महामोरनाप विषप तहेवार्यतबासीसं चिसास परसीस (परदरिसर्म)। तेसि भवएप बाले महामोह पम्मद // 22 // मर्प-उसी प्रकार गोपानी पुरुष मतमाम और मर्मत पर कमारण करने वाले मरत भगवंतों का भवर्सवाद (मिन्दाकारी पचन) कपन करता है पर महामोहमीप धर्म बांधना। पीसयाँ महामायनीय विषय नेपाइभस्स मग्गस्स दो भरपाई गई। त निप्पर्यवो मायेइ महामोह पडम्बा // 23 // भर्य-जोम्पायकारी माग का प्रपकार करता था। हो पात मनों को धर्म से परास्मुख करता रसपा यो म्याप मार्गकी निन्दा करता दुमा प से अपनी मारमा को म्याप मार्ग सेप्पत करना पारम्पत्ति महामोहमीप धर्म बांधताहै। कीमों मामानीय विषप भापरियउपग्माए सुप पिसर्प पगाहिए। तब खिमा पासे महामोई पहमा / / 2 / / अप-यो मापार्य भीर पापायों मे भत और रित। फिर उसकी निम्मा करता भीर उनका मस्पमति तापा प्रमामी महामोहनीय कम पिता। पासपी मरामानीय पिपप मायरिपउपरझायाखं सम्मना परिनप्पा। अपरिपपपपरे माहामा पकुमा॥२५॥ ---HEpiS5ESI - -11 G - JF
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy