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________________ SIXExamst-na-RRORE THREFxxxxxxxमामिलालSAXRADHADINES (133 / न है तथा जो विद्यार्थी अपने अध्यापक को मारता है, वह महा मोहनीय कर्म वाधता है। सोलहवा महामोहनीय विपय जे नायगं च रहस्स नेयारं निगमस्म वा / सेहिं बहुरवं हंता महामोहं पकुव्यइ // 16 // अर्थ-जो राष्ट्रीय स्थविर (नेता) को वा व्यापार के नेता का तथा बहुयश वाले राष्ट्रीय वा नगर श्रेष्ठी (सेठ) को भारता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सत्रहवा महामोहनीय विषय बहुजणस्सं णेयारं दीवं ताणं च पाणिणं / एयारिसं नरं हंता महामोहं पकुव्बइ-॥२०॥ . अर्थ-जो व्यक्ति द्वीपवत् प्राणियों के लिये आधारभूत है और जो बहुत से जनों का नेता है तथा दीपवत् न्याय मार्ग / को प्रकाशित करने वाला है, ऐसे पुरुष को मारने वाला महामोहनीय कर्म की उपार्जना करता है। अठारहवा महामोहनीय विषय उवाट्टियं पडिविरयं संजयं सुतवस्सिय / - बुक्कम्म धम्माओ मंसइ महामोहं पकुबह // 21 // अर्थ-जो'धर्म करने के लिये उपस्थित हुश्रा है, जो भिनु हिंसादि से निवृत्त होकर सयत (यत्नशील) और तप करने वाला है, उसको जो बलात्कार से धर्म भ्रष्ट करता है, वह महामोहनीय कर्म वांधता है।- RRIERREDIOXIDIOXEDXXXXXnxxcomatement
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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