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________________ (-AVA wwar Kareena ( 126 ) मंडप वाटादि में रोक कर भीतर घेरे हुए प्राणियों को धुएँ से मारता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है। ___ पाँचवॉ महामोहनीय विषय / सिस्सम्मि जे पहणइ उत्तमंगम्मि चेयसा / विभज्ज मत्थयं फाले महामोहं पकुबइ // 5 // / अर्थ-जो व्यक्ति संक्लिष्ट चित्त से किसी प्राणी के शिर पर महार करता है और फिर मस्तक का भेदन तथा ग्रीवादि का विदारण करता है, वह व्यक्ति महामोहनीय कर्म की उपार्जना करता है। छठा महामोहनीय विषय पुणो पुणो पणिधिए हरित्ता उचहसे जणं / फलेणं अदुवा दंडेणं महामोहं पकुव्वइ / / 6 / / / अर्थ-जो वारम्वार छल से मार्ग में चलते हुए को मारता है तथा मूर्ख श्रादि को फल से वा दंड से मार कर फिर उन की खूब हँसी करता है, वह महामोहनीय कर्म को बांधता है। सातवॉ महामोहनीय विषय - / गूढायारीनि गूहिज्जा मायं माया' छायए / , असंचवाई णियहाई महामोहं पकुन्बइ / / 7 / / अर्थ-जो अपने गुप्ताचार को छिपाता है, छल को छल से / आच्छादन करता है, असत्य बोलता है और अपने अवगुणों को छिपाता है, वह महामोहनीय कर्म वाधता है।'' FREEEEEEEE KREYE XNXIEXXIHAR R IXEEXAMRAKARMEXICCAREL
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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