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________________ E BE-स्तामा ( 118 ) प्रकार पन से हीन म्पतिपम्पापार पर की पा रहता पा विधाहीन म्पति पिग्मएरवी में विधवशिरोमपि पा की हवा मतापसी प्रकार बाम और राम्प से परित व्यक्ति प्यान की सिदि की इप्पा बताता पोगी भास्मारे मन में पान और पैराग्प प्रपश्य होने पारि, मिससे परमपमे कार्य की सिद्धि कर सके। भर मन पर उपस्थित होता.लिम्पान किस स्थान पर करना चाहिए ! इस प्रम के उचर में का साधा है कि पपपिशित स्थान परस्सी पथ परफ(मपुसफमराठेहमीर मिस स्थान पर मनोचि मसी प्रकार से निरोप किया या सके वास्तव में पही स्पाम उत्तमसपापि सापर के समीप पर, पर्वतशिनर, मदीतर पुष्पपारिका, कोट, पसमूह मदीसंगम पीप एपमूस गीर्योपान स्मशान गुहा भूमिएर कपसीवन पा करमीण रपवन इत्यादि निम स्पानों में ममोति भली प्रकार से निरोपमा सफे और मन की प्रसपता रा सके ही पान करने के पोम्प। स्पाम है। अब यह मन भी ग्पस्थित होता जिस पोम्प स्थानों की प्राप्ति होई तो फिर किस किस मासम पर पान अपाना पाहिए / म प्रमोत्तर में कहा जागफिशित प्राप्त पर मनोति स्थिर रासकरसी मासन पर बैठकर पान सगामा पाहिए / पपपि समापि के लिए पपंचालन प्ररंपर्यं कासन पशासन वीरासन इत्यादि भनेक प्रचारासमो का पर्सम किया गया तपापि मिस मिस मासन में सब IEEE पवन SINGE
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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