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________________ GEOGESTEIGTIGE HI दिया उमको सर्व प्रकार के कारपों में गा रिमा तो यही उस परमापातु परमारमा की पया! पदि ऐसा पामे फि प्रसपकाब में उन जीपों को उस मी पा था तो हम करते उनको कुसमी पपा पा! प्रापरे कपमानुसार उसएम में सुमपा पामीनपा तो फिर पनपेचारे, वीपों को परमात्मापी पपा ने एक फएमय समुप में राज, दिपा बाह!स परमारमा पपा दी अपी पाकी है। और यो रास्टर का रणम्त विया गयापा भी विपम एसयो इस विषय में संपनी हो सकता। कार फिसर को परमान नितान्त नहीं कियाममुरम्पति मानों के प्रकार होने पर नमुप पाप भषाप करेगा। किन्तु परमारमा को तो मापने सर्प माना, पातो पामती मोति जानता है कि अमुकमीच अमुक पाप कर्म करेगा तो / उसे राकना पारि भर पह मान मी हो साता है कि परिवान पर नहीं पेषता तब तो इतनी भीर पाहीन सिर होगा / A पर फर्म फराप पा करते प फोनरोरे पिताजी कर बुधबारको रणव रोगार तो भगा इस पर H से लिपा करने वाले को कीन पुरिमान परमात्मा मान सकता मर्यात् कोई मी नही / पदि ऐसे माना आप किया प्रगामताहीही तो फिर पसभी साता नर हो गई। पसापागाप कि परमारमा जानता तो है कि पारपा किसी भीष को रोकगा तर रस जीप कीसवमाता जाती। योगी! पाकिकम करने में मीरस्वतीभोर परमोसने EROESSEGEE E LDEEPEXEEEमरन
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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