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________________ ९५ इस प्रकार सर्व भेद अरूपी अजीव तत्व के ३० हो गए । "प्रश्न रूपी अजीव तत्य किसे कहते हैं ? उत्तर - युगल द्रव्य को क्योंकि पुद्गल शद का यही अर्थ कि जिसके परमाणुओंके मिलने और निठुरने का स्वभाव हो तथा सयोग और वियोग के धरने वाला हो तथा यावन्मान पदार्थ दृष्टिगोचर E aur उपभोग के अर्थ में आता है वह म पुद्गल द्रव्य ही है । म:- जिस प्रकार अरूपी अजीव के ३० भेद वर्णन किये गए ठीक उसी प्रकार रूपी अजीव के कितने भेट वर्णन किये गए हैं ? Į उत्तर -५३० भेद रूपी अजीव तत्व के वर्णन किये गए मदन - किस प्रकार से ? उत्तर:- सुनिये | जैसे कि 1 ५ सस्थान परिमंडल संस्थान ( चुडीके आकार ) वह सस्थान ( वृत्ताकार गोलाकार ) यस सस्थान त्रिकोणाकार ) चतुरस्र संस्थान चौकी के T ( पीठ के आकार ) आयत संस्थान ( दीर्घाकार ) ५ वर्ण:- कृष्ण १ नील २ पीत ३ र ४ और श्वेत ५
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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