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द्वारा ठीक विचार कर सकते हैं किंतु किसी धार्मिक शिक्षाओं को सुनते नहीं तो फिर धर्म से वचित रहना पडता है । अतएव सिद्ध हुआ कि धर्म का सबसे प्रथम श्रवण करना मुख्य कर्तव्य है फिर उसका अनुभव द्वारा निश्चय करना विशेष कार्य साधक है ।
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अतएव श्री भगवान की परम शिक्षाओं का अनुपालन हुए प्रत्येक प्राणी को चाहिये कि वह धार्मिक शिक्षाओं से
करते विभूशित होकर मोक्षाधिकारी पर्ने । सुझेषु किं बहुना ।
भवदीय,
उपाध्याय - जैन मुनि आत्माराम
పొంచి