SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ ● चाहिये जैसे कि --- आहार ( आचार ( आचार और व्यवहार ३ जिनका मक्षेप से नीचे वर्णन किया जाता है । L " १ आहार शुद्धि - गृहस्थ को योग्य है कि वह अपने आहार में विशेषतया सावधानी रक्खें क्योंकि आहार के सूक्ष्म परमाणु रम रूप परिणत होते हुए पानी इन्द्रियाँ जैसे कि श्रुतेन्द्रिय, चरिन्दिय, घाणेन्द्रिय, रमनेन्द्रिय और स्पर्शद्रिय तथा मन, वचन काया या श्वासोश्वास या आयुष्कर्म पर अपना प्रभाव डालते हैं । यदि मतोगुणी भोजन किया गया है तब उक्त प्राणों को वे परमाणु शात रस के प्रदान करने वाले धनजाते हैं । जिस प्रकार उष्णता मे पीडित पुरुष ने जब स्नान कर लिया तब जल के परमाणु उसका शात रस प्रदान करने वाले यनजाते हैं । यदि उसने अपनी उक्त ही दशा म मदिरा पान ही कर लिया तब वे परमाणु तमोगुण के उत्पादन करने वाले बन जाते हैं जिससे किमी र समय म तो किसी पुरप को अपने उक्त कथन किये गए १० प्राणों से ही हाथ धोने पडते हैं 1 ६ अत शरीर रक्षा के लिये भोजन निना सावधानी से न होना चाहिये और साथ ही तमोगुणी भोजन घा रजोगुणी भोजन सद्गृहस्थ को कदापि सेवन न करना चाहिये । कारण कि तमोगुणी भोजन मे वा रजोगुणी भोजन से आत्मा सद्गुणों से विमुक्त होता हुआ विकार भाव को
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy