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या देशावगाशिक प्रन का मुख्योपदेश सदेगी, पदार्थों का मेपन परनाही है। अताव सर्व सुरु, जनों को योग्य है कि वे सबर ग्रत के आश्रित , होकर स्वदेशी पदार्थों के सेपन में अपने जीवन को पविध यनाय निमसे मुगति के, अधिकारी , यन जाये। साथही इस बात का भी ध्यान रहे कि निस देश में निसका जन्म हुआ है उमी देश का उसके लिये प्राय जल वायु आदि हितकर होते हैं। अत प्रत्येक व्यक्ति को योग्य है कि वह अपने उप्तन्न हुए देश के सम्बन्ध का यथाविधि पूण उपदेश या ध्यान रक्से।
पाठ चारहरॉ।
कुप्रथाएँ। प्रिय मित्रों । सुमाग में चलने से ही प्रत्येक प्राणी मुखों का अनुभव कर मत्ता है । जिस प्रकार धूम्र शाटी (रेलगाडी) ( वाप्प शक्टी ) समीय रया (लेन ) पर चरती हुई अपने अभीष्ट स्थान पर मुख पूर्वक पहुंच जाती है, ठोर उसी प्रसर जो व्यक्ति सुमार्ग पर चलता है यह मुम पूर्वक निर्माण मार्ग पर आरूढ हो ही जाता है।