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________________ -,१४५ • वर्तना चाहिये तथा जिस प्रकार मित्रंता परस्पर रह । सके नसी प्रकार वर्तना चाहिये। ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिये लोभीऔर कामी मित्रता कभी Trभी नहीं वह मत्ती Pre I mir पुत्रः पितानी क्या मित्र पर विश्वास रपना चाहिये . . या नहीं। पिता-पुत्र विना-विश्वामा किये यह मित्रता-ही क्या है । i, yा, विश्वामा साममय तक न होना चाहिये जवतक मित्र की परीक्षा नहीं कीगई तथा उमका परिचय ... भली प्रकार से नहीं किया गया। परच जब वह ४. परीभा में ममुत्तीर्ण हो चुका है फिर वह विश्वासपा - अवश्य मेव वनगया है.ic arr . तमा इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिये कि मित्रता स्वार्थत्याग कर ही रह सची है और निस्वार्थ सिलना आयु पप्यंत रह मक्ती है। अपने किये हुए प्रण का पालन करना ही सुपुरुषों का लक्षण है । " " * - - - पुत्र-पिताजी । धर्मपत्नी - के माथ क्रिम प्रभार पर्तना -~,याहित्रे - E F THE पिता-पुत्र धर्मपत्नी के साथ मांग और प्रेम पूर्वक जिम प्रकार स्वगृह म केश उपन
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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