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________________ ૮ शिक्षा कीजिये कि जिनके पालन से दोनों लोक सुख की प्राप्ति होजाती है । 7 पिता - मेरे परम प्रिय पुत्र 1 अब मैं तुमसे उन्ही नियमा < का वर्णन करता है कि जिनके पालने से दोनों लोक में 1 शांति मिलती है । "" 3 प्रत्येक बालक को सात व्यसनों का परित्याग करना । चाहिये क्योंकि व्यसन नामही कष्ट का है सो सात कारण क्ट के उन होने के बताये गए हैं जैसे कि - - १ जुवा – किसी प्रकार का भी जुआँ न खेलना चाहिये । क्योकि इसका फल दोनों लोक में तु खप्रद कथन किया गया, है। तथा इसी लोक में जुआरी कौन से कष्टों का सामना नहीं करता ? अर्थात् सभी कष्ट जुआरी को भोगने पड़ते हैं ! मो अनुमान से अनुमेय का ज्ञान हो जाता है । अत निसका फल जहा पर तु समद ही दिन रहा है तो फिर वह परलोक में सुrve किस प्रकार माना जा सकता है । - तथा जुआरी कौन से अकार्य करने की चेष्टा नहीं करता अनण्य जुआँ कापि न मेलना चाहिये । , साथ ही इस यान का ध्यान भी रक्सा जाय कि ● श्रीटाओं के मेलने से केवल समय ही त्यर्थ जाता सेल न खेलने चाहिये। जैसे कि चोपड, तास, सार हो .
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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