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________________ E नही होते हैं। जैसे कि - जब धन की इच्छानुकूल प्राप्ति होगई वनतो मानो कि उम आत्मा को मुस तो होगया परंतु जय उसी धन का किसी निमित्त से वियोग होनाता है तन फिर वही आत्मा परम शोक से व्याकुल हो जाता है । इसी प्रकार अन्य पदार्थों के निपय में भी जानना चाहिये । लिये स्वानुभव अतएव परम सुख की प्राप्ति के करना चाहिये | अन प्रश्न यह उपस्थित हो मत्ता है कि सानुभव किस प्रकार करना चाहिये ? तो इसके उत्तर में कहा जा सक्ता है कि जन आत्मा की बाहिरी वासनाएं नष्ट हो जाती हैं और उस आत्मा के ममभाव प्रत्येक जीन के साथ हो जाते हैं तन उस समय आत्मा सानुभव कर सत्ता है | अतएव tara आत्मा के सानुभव करने के लिये प्रथम पान नातों को अवश्यमेव ध्यान रसना चाहिये। जैसे कि 1 1 निवेक १ विचार २ शाति ३ निर्ममत्न भाव ४ आत्म विकास करने का शुद्ध स्थान ५ इन पाच वातों का विचार सवाल करते रहना चाहिये । जैसे ि 1 ? १ विवेक सत् और असत् वस्तु पर विचार करत रहना । कि हेय, ज्ञेय और साथही इस बात का विचार करना उपादेय पदार्थ कौन २ मे हैं ? क्योंकि - यावत्काल पर्यन्त
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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