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________________ चैनसम्प्रदामशिक्षा। १११-हे पूण्ने पाले ! मह पासा महुस पस्यामकारी है, इह की वृद्धि होगी, ममीन का गम होगा, पन का गम होगा, पुत्र का मी ठाम दीसता है और प्यारे मित्र का वर्शन होगा, किसी से सम्बंप होगा तपा तीन महीने के भीतर विचारे हुए श्रमम लाम होगा, गुरु की भक्ति और इसदेवी का पूजन कर, इस मास की सस्पता च प्राव यह है कि तेरे शरीर के उपर दोनों तरफ मसा; विस मा पाप का चिो । १२१-हे पूछने पाठे! तूने ठिकाने न शाम वा सजन की मुलाकात विमारी , पात, धन, सम्पधि और भाई मधु की पदि सबा पहिले असे सम्मान का मिम्ना वि चारा है, मह सब यास निर्षित (गिमा फिसी विम) तेरे सिप सुसवामी होगी, इस का निम्मम तुझे इस प्रकार हो सकता है कि-सू सम में भपने पो गेगों को देखा। १२२-ने पूछने पाछे ! तुझे वित (पन ) भौर यसका गम होगा, ठिकाना और सम्मान मिलेगा तमा तेरी मनोऽभीष्ठ ( मनचाही) पस्त मिलेगी, इस में बड़ा मठकर, भप वेरा पाप और दुख क्षीण हो गया, इस लिये सझे कस्माष की प्राप्ति होगी, इस का पुरामा यह है कि तू राव को स्वम में अपना प्रत्यक्ष में लड़ाई कम करना देखेमा । १२१-रे पूछने पाले ! तेरे कार्य और मन की सिद्धि होगी, सेरे विचारे हुए सब मामले सिव होंगे, कुटुम्न की पदिसी का मम सवा सबन की मुन्नत होगी, वेरे मन में जो पहुत दिनों से निधार है यह मन बस्दी पूर्ण होगा, इस बात का या पुरावा शि-तेरे घर में हाई सभा सीसम्बंधी चिन्ता भाव से पाँच दिन के मीवर हुए होगा। १२१२ पूछने वा! मेरी भाइयों से वस्दी मुलाकात होगी, वेरा सन्त सम्छा प्रहका बर भी मच्छा है, इस लिये तेरे सम काम हो जायेंगे, तू अपनी कुम्देवी पूजन र १३१-हे पूछने बासे! तुझे ठिाने का गम, भन का छाम तमा पिच में पेन होगा, जो कुछ काम मेरा निगा गया है पद भी सुपर मायेगा या नो ए चीन चोरी में गई है का भी मिल जावेगी, इस मात का यह पुराना है कि-तू ने सम में पक्ष में देसा भपका देखेगा। १२ पूछने पाठे! यो काम तू मे विपारावर सपो चायेगा, इस बात पर यह पुराना है कि-तेरी स्त्री के साप मेरी यहुस प्रीति है। - - पुण्ने बाटे। इस चकन स पर धन के नाम का त मरीर में रोग होने रे किसी प्रकार का पन्धन, वान के पोसे का सतरा है, तू ने मारी काम पिपारा पर पड़ी वालीफ से पूरा होगा। सोला! Hझे रामकान की तरफ की सर्जरी १२५ने पूछने वामे! मुझे रामकान की सरफ की अपवा लेखचिन्ता है, न मिमी युसमन से बीसना पाहता, यह मा सोना पाँदी की भोर परदेश मन्तिान
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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