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________________ पञ्चम अध्याय ॥ ७४३ फल देख लेना चाहिये, ( इस शकुनावलि का फल ठीक २ मिलता है ) परन्तु यह स्मरण रखना चाहिये कि-एक वार शकुन के लेनेपर ( उस का फल चाहे बुरा आवे चाहे अच्छा आवे ) फिर दूसरी वार शकुन नहीं लेना चाहिये । __ मन्त्र-ओ नमो भगवति कृप्माडनि सर्वकार्यप्रसाधिनि सर्वनिमित्तप्रकाशिनि एह्येहि २ वरं देहि २ हलि २ मातहिनि सत्य बेहि २ स्वाहा । इस मन्त्र को सात वार पढ़ कर "सत्य भापे असत्य का परिहार करे" इस प्रकार मुख स कह कर पासे को डालना चाहिये, यदि पासा उपस्थित न हो तो नीचे जो पासावलि का यन्त्र लिखा है उस पर तीन वार अहुलि को फेर कर चाहे जिस कोठे पर रख दे तथा आगे जो उस का फल लिखा है उसे देख ले ।। पासावलिका यन्त्र ॥ १११ ११२ ११३ ११४ १२१ १२२ १२३ १२४ १३१ १३२ १३३ १३४ १४१ १४२ १४३ १४४ २११ २१२ २१३ २१४ २२१ २२२ २२३ २२४ २३१ २३२ २३३ २३४ २४१ २४२ २४३ २४४ ३११ ३१२ ३१३ ३१४ ३२१ ३२२ ३२३ ३२४ ३३१ ३३२ ३३३ ३३४ ३४१ ३४२ ३४३ ३४४ ४११ ४१२ ११३ ४१४ ४२१ ४२२ ४२३ ४२४ ४३१ ४३२ ४३३ ४३४ ४४१ ४४२ ४४३ ४४४ पासावलिका का क्रमानुसार फल ॥ १११-हे पूछने वाले! यह पासा बहुत शुभ है, तेरे दिन अच्छे है, तू ने विलक्षण वात विचार रक्खी है, वह सब सिद्ध होगी, व्यापार में लाभ होगा और युद्ध में जीत होगी। ११२-हे पासा लेने वाले । तेरा काम सिद्ध नहीं होगा, इस लिये विचारे हुए काम को छोड़ कर दूसरा काम कर तथा देवाधिदेव का ध्यान रख, इस शकुन का यह प्रमाण ( पुरावा ) है कि-तू रात को स्वप्न में काक (कौआ), घुग्घू , गीध, मक्खियाँ, मच्छर, मानो अपने शरीर में तेल लगाया हो अथवा काला साँप देखा हो, ऐसा देखेगा। ११३-हे पूछने वाले ! तू ने जो विचार किया है उस का फल सुन, तू किसी स्थान . (ठिकाने ) को वा धन के लाभ को अथवा किसी सजन की मुलाकात को चाहता है.. यह सब तुझे मिलेगा, तेरे क्लेश और चिन्ता के दिन बहुत से बीत गये, अब तेरे अच्छे दिन आ गये है, इस बात की सत्यता ( सचाई ) का प्रमाण यह है कि-तेरी कोख पर तिल वा मसा अथवा 'कोई घाव का चिह्न है ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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