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________________ ६५२ नैनसम्पदामशिक्षा ॥ उन्हीं के कुटुम्ब में बनारसवाले राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द भी बड़े विद्वान् हुए, जिन पर प्रसन्न हो कर श्रीमती गवर्नमेंट ने उन्हें तक उपाधि दी थी । बीसवीं सख्या - लोढा गोन ॥ महाराज पृथ्वीराख चौहान के राज्य में माखन सिंह नामक चौहान अजमेर का सूबे दार था, उस के कोई पुत्र नहीं था, खाखन सिंह ने एक जैनाचार्य की बहुत कुछ से मक्ति की और माघार्म महाराज से पुत्रविषयक अपनी कामना मकट की, जैनाचार्य ने कहा कि- "यदि तू दयामूल जैन धर्म का महण करे तो तेरे पुत्र हो सकता है" छाखन सिंह ने ऊपरी मन से इस भाव का स्वीकार कर लिया परन्तु मन में वगा रकूला अर्थात् मन में यह विचार किया कि पुत्र के हो जाने के बाद दयामूल चैन धर्म को छोड़ दूँगा, निदान arat सिंह के पुत्र तो हुआ परन्तु वह विना हाम पैरों का केवल मांस के छोटे (छोटे) समान उत्पन हुआ, उस को देख कर खाखन सिंह ने समझ किया कि मैं ने जो मन मेंछ रखा था उसी का यह फल है, यह विचार वह श्रीम ही आचार्य महाराज के पास आ कर उन के चरणों में गिर पड़ा और अपनी सब दगाबाजी को प्रकट कर दिया तब भाभा महाराज ने कहा कि "फिर ऐसी वगानामी करोगे" मखन सिंह ने हा जोड़ कर कहा कि" - महाराज ! मन कभी ऐसा न करूँगा" तब सूरि महाराज ने कहा कि- "इस को सो वस्त्र में लपेट कर मर्गव ( बड़) की भोभ ( वोह ) में रख दो और हम से मने हुए पानी को के खा कर उस के ऊपर तीन दिन तक उस पानी के छीटे यो, ऐसा करने से मन की बार भी तुम्हारे पुत्र होगा, परन्तु देखो ! यदि दयामूळ धर्म रहोगे तो तुम इस भव और पर भव में सुख को पाओगे" इस प्रकार उपदेष्ठ वे में हुआ तू अब भी t कह नागा उस को लग कर पति की ने कहा कि-"अरे । अर्प देखा तो क्या माययपि जब पाने से तु राज्य दो माँ होग्य परतु हम तेरे घरों में बेटेगी और तु जयरसेठ के धाम से संसार में होने वहाँ से करिये और बति भी के मन के अनुसार श्री सब बात हुई अर्थात् म को खून की कमी प्राप्त हुई और वे जय इनका विशेष वर्णम यहाँ पर बना के बढ़ने के भय से नहीं कर सकते है तुइन के विषय में इतना ही किया करती है के किये और पानी के बीच में भी इनका स्वस्य सुि बाद में पूर्व में बड़ा सुन्दर का परन्तु अब उम्र को भारी में लिए दिया है, ब उनके स्थान पर योग नाम हुए पुत्र है और वे भी जम के नाम से प्रसिद्ध है, उनका स भी भ्रमगस्युसार अब भी कुछ कम नहीं है जम के दो पुत्ररम है उन की बुद्धि और क्षेत्र को देख कर बा की जाती है कि ने भी अपने क्यों की किस वृक्ष का विबन कर भवन अपने काम को प्रदीत करेंगे क्योंकि अपने पूर्वजों के गुणों का अनुसरण करना ही पुत्रों का करम १- पोत्र की उत्पति के हो के हमारे देखने में आा है तथा एक और विशेष देने माना का नाम नहीं देखने में माना है है । है पर भी सुनने में
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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