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(१५) ___ राणा के इस प्रकार वचनों को श्रवण करके मुनि मे विचार किया कि मेरी यह धर्म है कि-किसी पाणी को। मी पय न उपजाऊं तथा जो मेरे से भय करें, उनका भय दूर करूं, इसी प्रकार शास्त्रों का उल्लेख है। (निर्भय करना परम धर्म है) ऐसा विचार कर मुनि पोले,-हे गजन् ! भय मतफर ! मैं तुझे अभय दान देता हूं, तूभी जीवों को अभय दान प्रदान कर, किसी पाणी को दुःखित करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है।
हे पार्थिव ! इस क्षणभंगुर, अनित्य, संसार में स्वल्प जीवन के वास्ते क्यों प्राणी वध करता है।
हे नृप ! एकदिन सर्वराष्ट्र मन्तःपुरादिक, भाण्डागारादिक त्यागने पड़ेंगे, और परवश होकर परलोक को जाना पड़ेगा, फिर ऐसे अनित्य ससार को देखकर भी क्यों गज्य में मृच्छित होकर जीलों को पीड़ित करने से स्वयात्मा को पापों से बोझल कररहा है।
महीपते ! जिस जीवित तया रूप में तू इतना मुग्ध हो रहा है, और परलोक के भय से निर्मय होरहा है, वह भायु तथा शरीर की सौन्दर्य विद्युत् के समान