SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६११ अनसम्प्रदायश्चिक्षा । राम नामक तीन पुत्र हुए, इन में से ज्येष्ठ पुत्र मच्छराज बी भपने भाइयों को साथ छेकर मण्डोवर नगर में राम श्री रिड़मल जी के पास आ रो पौर राब रिसमा बी में बच्छराम नी की बुद्धि के मद्मुत पमस्कार को देस कर उनें अपना मन्त्री निमत पर छिया, बस पच्छरान जी मी मन्त्री मन पर उसी दिन से राबकार्य के सब व्यवहार में पबोषित रीति से करने लगे। कुछ समय के बाद चित्तौर के राना कुम्भकरण में तमा राव रिरमम जी के पुत्र चौपा बी में किसी कारण से मापस में और जप गया, उसके पीछे राग रिसमस वी भौर ममी बच्छराम ची राना कुम्भकरण के पास चिपोर में मिलने के लिये गये, यपपि वहाँ बाने से इन दोनों से राना बी मिठे मुळे वो सही परन्तु उन (राना पी) के मन में कपट वा इस रिये उनों मे छल कर के राम रिदमा भी को पोला देकर मार गम, मत्री पच्कराम इस सर्व व्यवहार को चान कर छल्मस से यहाँ से निकल कर मण्डोर में मा गरे । रान रिडमग मी की मृत्यु हो जाने से उन के पुत्र बोपा मी उन के पाटनसीन हुए भोर उन्हों ने मन्त्री मच्छराव को सम्मान देकर पूर्ववत् ही नर्ने मन्त्री रस कर राबकाय सौंप दिया, गोपा मी ने मपनी पीरता के कारण पूर्व पैर के हेतु राना के वेश को उमा कर दिया भौर मन्स में राना को मी भपने वश में कर रिया, रान भोपा जी के वो नईरग पे रानी मी उस रसगी की कोल से विझम (पीका बी) भौर पीवा नामक वो पुत्र रस हुए सभा दूसरी रानी जसमावे नामक हाड़ी बी, उस के नीषा, सूबा और सावन नामक तीन पुत्र हुए, बीच मी छोटी मास्था में ही बरेचच और बुद्धिमान् थे इस लिये उम के पराक्रम वेष और मुद्धि को देस कर हाहरी रानी ने मन में यह विचार कर कि पीका की विपमानवा में हमारे पुत्र को राव नहीं मिसेगा, अनेक युचियों से राम भोपा भी को पत्र में कर उन के कान भर दिये, राम गोपा भी परे नुद्धिमान् में मतः उनों ने भोरे ही में रानी के भभिप्राम को अच्छे प्रकार से मन में समझ ग्मिा, एक दिन वर में भाई पेटे भौर सार उपसित, इतने ही में कुँवर पीका मी भी भम्बर से मा गये और मुजरा कर अपने काका काम भी के पास बैठ गये, दर में राज्यनीति के विषम में अनेक माते होने सगी, उस समय मनसर पाफर राम बोपा जी ने महरा परम्पधेर म तिस प्र एक रास बना माहेरपीमनेर के बड़े उपाय (पास) में महिमाभरि जनमगार में नियमान: सीक भनुसार यह मिया माण पिाव-मारवाडी भाषा में पियामा एमप भी दी विषय प्रबीसमेरनिमपी प्रभारी पति मोहममम पी नवी मे बर्मा में हम प्रान म्मिा पा पर मेय भी पूरस से प्रार मिम्वा माहीम मेयर प्राप्त होने से हम उस पिप भार मी बरोबई, भताम रकमहोपको इसका भतरण से पम्पयर देवे ।। १-यात्रामा पापाश्री पुनी भी।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy