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-पुरुषार्थ अवश्य ही करना चाहिये और इस चारित्र के दो भेद किए गये हैं जैसे देश चारित्र वा सर्व पारित्र सो देश चारित्र गृहस्थ सुख पूर्वक ग्रहण कर सकते हैं सवे चारित्र मुनि जन धारण करते हैं सो गृहस्थों को देश चारित्र में विशेष परिश्रम करना चाहिये जिस से वह सुगवि के अधिकारी वर्ने ।
पाठ आठवां। (संयतराजर्षि का परिचय ) पूर्व समय में काम्पिलपुर नामक एक नगर था जो नागरिक गुणों से मण्डित था, सुन्दरता में इतना प्रसिद्ध था, कि-दूरदेशान्तरों से दर्शक जन देखने की तीव्र इच्छा से वहां पर आये थे, और नगर की मनोहरवा को देखकर अपने २ आगमन के परिश्रम को सफल मानते थे, उस नगर के वाहिर एक अद्यान या, जिसका नाम "केशरी बन" ऐसा प्रसिद्ध था, नाना पकार के सुन्दर वृत्तों का मालप या, विविध प्रकार बतायें जिसकी प्रभा को उत्तेजित कररही थीं, जिनमें