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जैनसम्पदामशिक्षा ||
३६ - आमपात से पीड़ित रोगी को गूम के साथ अंडी का तेल फिला कर रेचन (जुलाब) फराना चाहिये ।
३७- गोमूत्र के साथ में सांठ, हर और गूगुरू को पीने से यह रोग मिट जाता है। २८ - साठ, एरह और गिलोय, इन के गग २ काथ को गूगल डाल कर पीने से फमर, बांध, उरु और पीठ की पीड़ा श्रीम ही दूर हो जाती है ।
३० - हिंग्वादि चूर्ण- दींग, चम्म, विष्ट निमक, राठि, पीपल, जीरा भार पुहकर गूल, ये सभ आधियम स अधिक भाग लेनी चाहियें', इन का पूर्ण गर्म जस साथ देने से आमपात और उस के विकार दूर हो जाते हैं ।
२०- पिप्पल्यादि चूर्ण पीपल, पीपलामूल, सैंधा निमक, काला जीरा, धम्म, चित्रफ, पाळीसपत्र और नागकेसर, मे सम मत्थका २ पल, काला निमफ ५ प फाली मिर्च, जीरा और सोंठ, मरयेक एक एफ पल, अनारदाना पाय भर भोर म रूपेव वो पल, सब को फूट फर चूर्ण बना लेना चाहिये, इरा का गर्म जल के साथ सेवन फरने से दी है, बवासीर, ग्रहणी, गोमा, उदररोग, भगन्दर, मिरोग,
सुजली और अरुचि, इन सम का नाश होता है ।
धीर्मा को समान भाग कांजी के साथ पीने से
४१ पन्यादि चूर्ण-हरह, साँठ और अजवायन, इन छेफर घूर्ण करना चाहिये, इस भूजे को छाछ, गर्ग जल, भपा भागपाठ, सूजन, गन्दामि, पीनरा, सांसी, पदमरोग, सरंभव और भरुनि, इन राब रोमों का नाच होता दे ।
३२- रसोनादि फाथ – लहसुन, सांठ और निगुण्डी, शन का काम भाम को श्रीमदी नए फरता है, यह सर्वाम भोप दे |
४३ - शय्यादि फाध-धी (कपूर) भोर ग मिलाकर सात दिन तक पीना चाहिम इस के हो जाता है ।
सांट, इन के फरक को सांठ के
पीने से आमपास रोग पनाह
6- पुनर्नयादि चूर्ण-पुनीषा, गिलाम, खांठ, राजापर, विधामरा, फपूर भोर गोरखमुण्डी, इन का पूर्ण यमा कर फौजी से पीमा घाटिये, इसके पीने से भामाश १- एक भाव, धन्य भाग बनीन भागोबा भाग, वनपा श्री छः भाग और करगुल प्रात भाग मन
-विवारचात् आमवारा कोष और आदि विकार
-रमेव भाषा का बहना ॥
षा की बड़ी गारण्डी भी प्रवरा कीर्ण होती है वह अमीन तथा समान स्थान बहुत होती है ॥