SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 578
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ बेनसम्प्रदायशिक्षा ॥ यह बहुत ही आवश्यक (बहरी) मात है कि जिस भी मभना मिस पुरुष के यह रोए । हो उस को चाहिये कि प्रथम अच्छे प्रकार से इस रोग की चिकित्सा करा ले, पीछे सपत्य करे, क्योंफि ऐसा करने से सयोगद्वारा स्थित हुए गर्भ में हानि नहीं पहुँचती है। (मम) निस पुरुष के उपदंश रोग हो चुका है वह पुरुष यदि विवाह करने की सम्मति मगि तो उसे विवाह करने की सम्मति देनी चाहिये भगवा नहीं देनी चाहिये। (उत्सर) इस विषय में सम्मति देने से पूर्व की एक पावें विचारणीम ( विचार करने योग्य) है, क्योकि देसो ! प्रथम तो उपदंश की व्यापि एक बार होने के पीछे शरीर में से समूल नष्ट होती है भबमा नहीं होती है इस विषय में सपपि पूरा सन्देह रावा तयापि मोग्य चिकिस्सा करने के बाद उपर्वच रोग के शान्स होने के पीछे एक दो पा तक उस की प्रतीक्षा करनी चाहिये, यदि उक्त समयक मह न्यामि न दीस पईसा विवाह करने में कोई भी हानि प्रतीत नहीं होती है, दूसरे अन्य विषों के समान उपदं न मी विप समय पाकर मत बहुत दिन व्यतीत हो जाने से श्रीर्ण मौर रमील (फमनोर) रोगाता है, इस का मस्मथ ममाप यही है कि जिन को पहिले यह रोग हो शुका या पीछे योम्प उपायों के मारा छान्त ऐ जाने पर तमा फिर बहुत समय तक दिख माई न देने पर मिन भी पुरुषों ने विवाह किया उन चोड़ों की सन्तति बहुषा सन्दुस्ख वीस पाती है, मही विपय जूनागढ़ के एम् एम् प्रिमुवनवास बैन वास्टरने भी मिला है। __ गर्मी से यो २ रोग होते हैं वे प्राय स्वपा (चमडी), मुस, हार, साँपे, भास, नच और केस में दिखाई देते हैं, उन ध्र वर्षन संक्षेप से किया आता है १-सपा के उपर महुपा सास तौर से रंग के समान पकवे देखने में भावे , में (पा) गोस होते हैं सभा छोटे पकते तो दुमनी से भी छोटे मौर पर पार रुपये से भी अछ विछेप मोहोते हैं, ये प्रायः शरीर की सम्पूर्ण त्वचा पर होते हैं अर्थात् पेर, छाती, पेर भोर राम इत्यादि सब अवयवों पर दीस पाते, परन्तु कभी २ ये पर पर दोनों हथेसियों में भौर पैर के सत्रयों में ही माखन होते हैं, कमी २ ऐसा भी होता है कि-दन पाठों के साम में सपा के छारे मभवा सोग भी निकट माते हैं, या उपदेश का एक सास किमी २ गर्मी के फफोले भी हो चास उनको पूपि टिप तमा रम पिटिका प्रवे, मनुष्य की नियत दक्षा में तो ये भी पक कर बही २ पानी कप में दो बात भपरा सून चाने के बाद उनी पर पो २ सरोट जम बाठ है, इस प्रचार के पास सरांट कभी २ पैरों के उपर देखने में भाते हैं। दन सिराय उपक रण परती भौर गुमई भी बाते हैं, वालम यह -िसाबितन साधारण रोग हात है उन्दी के किसी न रिसी बस में उपदेश भी -पपरम भवा II
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy