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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ५२७ इन के सिवाय-पानी की अधिक प्यास, नाक का घिसना, पेट में दर्द, मुख में दुर्गन्धि, वमन, बेचैनी, अनिद्रा (नीद का न आना ), गुदा में काटे, दस्त का पतला आना, कभी दस्त में और कभी मुख के द्वारा कृमियो का गिरना, खुराक की अल्पता (कमी), वकना, नींद में दांतों का पीसना, चौक उठना, हिचकी और खैचातान, इत्यादि लक्षण भी इस रोग में होते है। इस रोग में कभी २ ऐसा होता है कि लक्षणों का ठीक परिज्ञान न होने से वैद्य वा डाक्टर भी इस रोग का निश्चय नहीं कर सकते है । जब यह रोग प्रबल हो जाता है तब हैज़ा, मिरगी और क्षिप्तचित्तता (दीवानापन) इत्यादि रोग भी इसी से उत्पन्न हो जाते है । चिकित्सा -१-यदि कृमि गोल हो तो इन के दूर करने के लिये सेंटोनोईन सादी और अच्छी चिकित्सा है, इस के देने की विधि यह है कि एक से पाच ग्रेन तक सेंटोनाईन को मिश्री के साथ में रात को देना चाहिये तथा प्रातःकाल थोडा सा अडी का तेल पिलाना चाहिये, ऐसा करने से दस्त के द्वारा कृमिया निकल जावेंगी, यदि पेट में अधिक कृमियो की शंका हो तो एक दो दिन के बाद फिर भी इसी प्रकार करना चाहिये, ऐसा करने से सब कृमिया निकल जावेंगी। ऊपर कही हुई चिकित्सा से बच्चे की दो तीन दिन में ५० से १०० तक कृमियां निकल जाती हैं। बहुत से लोग यह समझते है कि जब कृमि की कोथली (थैली) निकल जाती है तब बच्चा मर जाता है, परन्तु यह उन का मिथ्या भ्रम है ।। १-यदि सेंटोनाईन न मिल सके तो उस के बदले ( एवज ) में बाज़ार में जो लोझेन्लीस अर्थात् गोल चपटी टिकिया विकती हैं उन्हें देना चाहिये, क्योंकि उन में भी सेंटोनाईन के साथ वूरा वा दूसरा मीठा पदार्थ मिला रहता है, इन में एक सुभीता यह भी है कि वचे इन्हें मिठाई समझ कर शीघ्र ही खा भी लेते है । १-अर्थात् हैजा और मिरगी आदि इस रोग के उपद्रव हैं । २-यह एक सफेद, साफ तथा कडए खादवाली वस्तु होती है तथा अंग्रेजी औषधालयों मे प्राय. सर्वत्र मिलती है। ३-रात को देने से दवा का असर रातभर में खूव हो जाता है अर्थात् कृमिया अपने स्थान को छोड देती ह तथा नि सल सी हो जाती है तथा प्रात काल अण्डी के तेल का जुलाव देने से सब कृमिया शीच के मार्ग से निकल जाती है और अग्नि प्रदीप्त होती है । ४-क्योंकि कृमियों की कोथली के निकलने से और बच्चे के मरने से क्या सम्बन्ध है। ५-ये प्राय. सफेद रंग की होती है तथा सौदागर लोगों के पास विका करती है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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