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________________ ५१२ चैनसम्प्रदायनिक्षा | में अनेक भद्भुत और असम्भव या प्राय सुनी जाती है, जैसे-हाथ में फप सूत प्र वागा पाभकर सघ हाल कह देना इत्यादि, ऐसी पातों में सत्य विभिन्मान भी नहीं होगा है किन्तु केपस मूठ ही होता है, इस लिये सुजनों फो उपित है कि धूलों के बारी जान से यपकर नारीपरीक्षा के यभार्भ तस्व को समझें ।। इस मन्म में बो नाहीपरीक्षा का पिवरण किया है वह नाडीज्ञान के सधे ममिम पियों और अभ्यासियों के लिये बहुत उपयोगी है, क्योंकि इस अन्म में किये हुए विपरम के अनुसार मुछ समयता अभ्यास और भनुभव होने से नागीपरीधा के साथ विचार और रोगपरीक्षा फी बहुत सी आवश्यक भूचियां भी मिड सपती है, इस दिन विद्वानों की लिसीहुई नाडीपरीया अथवा उन्हीं के सिद्धान्त के अनुकत इस मन्त्र में पर्णित नाडीपरीक्षा प्रही अम्पास करना चाहिये किन्तु नाडीपरीक्षा के विषय में वो पूतों ने मत्यन्त मुठी पाते प्रसिद्ध कर रखी है उनपर मिल्कुल ध्यान नहीं देना पारिष देखो ! मों ने नाडीपरीक्षा के विपम में फैसी २ मिथ्या मानें प्रसिद्ध पर रस्सी कि रोगी ने छ महीने परिछे ममुफ साग सामा भा, पस भमुफ ने ये २ पीजे साई भी इस्यादि, कहिये ये सप गर्ग नहीं तो भौर क्या है ! बहुत से हकीमसाहयों ने भौर पैचों ने नाड़ी की ए से ज्यादा महिमा पग रक्सी। तथा असम्मष भोर पड़ी ई गप्पों को लोगों के दिनों में चमा दी हैं, ऐसे मोठे लोगों का जप कमी राल्टरी चिकित्साके द्वारा रोग मिटना कठिन होता है मामला देरी सगती है सब वे मूर्स छोग गस्टरों की मेयरफी को प्रकट करने सगते र पार करते हैं कि-"राफ्टरों को नाडीपरीक्षा का ज्ञान नहीं।' पीछे वे गोग देठी देय पास मार करते हैं कि "हमारी नाड़ी को देसो, हमारे शरीर में क्या रोग है, इस वैप ठसी को समझते है कि-बो नारी देसफर रोग को पतला देनेऐसी दशा में का सस्पबादी वैप होता है वह तो सत्य २ कर देता है कि-"माइयो! नादीपरीमा से सम्हारी मारुति की कुछ बातों को तो हम समम गे परन्तु मुम भपनी मम से मासिरतको २ हकीकस पीती है भौर जो हकीकत है पा सब साफ २ र दो कि किस कारण से रोग हुभारे, रोग कितने दिनों का सुभा, स्पा २ पवा की बीमार क्या २ पय्म माया पिया था, क्योंकि मुम्हारा यह सप राम विदित होने से हम रोग की परीक्षा कर सकेंगे" यपपि विधान सभा चतुर बेग नाही को देखकर रोगी के सरीर की सिति का पत छ अनुमान तो खम र समते हैं तथा वा अनुमान प्रामा सपा मी निकस्सा है. सवापि वे (विद्वान् पैप) नाडीपरीमा पर मसिश्चय भवा रखने महान गेगों के सामने अपनी परीक्षा देवर भापमी कीमत नहीं करना पाहसे हैं, परन्त -भव मा नाम देनम सब त म मत पति बेल।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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