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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३२७ १ ॥ यद्यपि कवि का यह तथापि इन की हानि को का मणी, ये छूटसी मूआ " ॥ कथन बिलकुल सत्य है कि ये बातें मरने पर ही छूटती है समझकर जो पुरुष सच्चे मन से छोड़ना चाहे वह अवश्य छोड़ सकता है, इस लिये व्यसनी पुरुष को चाहिये कि यथाशक्य व्यसन को धीरे २ कम करता जावे, यही उस ( व्यसन ) के छूटने का एक सहज उपाय है तथा यदि आप व्यसन में पड़ कर उस से निकलने में असमर्थ हो जावे तो अपनी सन्तति का तो उस से अवश्य बचाव रक्खे जिस से भावी में वह तो दुर्दशा में न पडे । इन पूर्व कहे हुए सात महा व्यसनों के अतिरिक्त और भी बहुत से कुव्यसन है जिन से बचना बुद्धिमानों का परम धर्म है, हे पाठक गणो ! यदि आप को अपनी शारीरिक उन्नति का, सुखपूर्वक धन को प्राप्त करने का तथा उस की रक्षा का ध्यान है, एवं धर्म के पालन करने की, नाना आपत्तियों से बचने की तथा देश और जाति को आनन्द मंगल में देखने की अभिलापा है तो सदा अफीम, चण्डू, गाजा, चरस, धतूरा और भाग आदि निकृष्ट पदार्थों से बचिये, क्योंकि ये पदार्थ परिणाम में बहुत ही हानि करते हैं, इसी लिये धर्मशास्त्रो में इन के त्याग के लिये अनेकशः आज्ञा दी गई है, यद्यपि इन पदार्थों के सेवन करने वालों की दुर्दशा को बुद्धिमानोने देखा ही होगा तथापि सर्व साधारण के जानने के लिये इन पदार्थों के सेवन से उत्पन्न होनेवाली हानियों का संक्षेप से वर्णन करते है: अफीम -- अफीम के खाने से बुद्धि कम हो जाती है तथा मगज़ में खुश्की बढ़ जाती है, मनुष्य न्यूनवल तथा सुस्त हो जाता है, मुख का प्रकाश कम हो जाता है, मुखपर स्याही आ जाती है, मास सूख जाता है तथा खाल मुरझा जाती है, वीर्यका बल पीनेक में पड़े रहते हैं, उन चढ़ने तक सोते है जिससे कम हो जाता है, इस का सेवन करनेवाले पुरुष घंटों तक को रात्रि में नीद नही आती है और प्रात काल में दिन आयु कम हो जाती है, दो पहर को शौच के लिये जाकर वहा ( शौचस्थान में ) घण्टो तक बैठे रहते है, समय पर यदि अफीम खाने को न मिले तो आखों में जलन पड़ती है। तथा हाथ पैर ऐंठने लगते हैं, जाडे के दिनों में उनको पानी से ऐसा डर लगता है कि वे स्नानतक नही करते है इस से उन के शरीर में दुर्गंध आने लगती है, उन का रग पीला पड़ जाता है तथा खासी आदि अनेक प्रकार रोग हो जाते है । के चण्डू -- इस के नशे से भी ऊपर लिखी हुई इतनी विशेषता और भी है कि इस के पीने से हृदय में मैल जम जाता है जिस सब हानिया होती है, हा इस में १- पीनक मे पडने पर उन लोगों को यह भी सुध बुध नहीं रहती है कि हम कहा है, ससार किधर है और संसार मे क्या हो रहा है ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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