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चतुर्थ अध्याय ॥
२९३ हेमन्त और शिशिर ऋतु का पथ्यापथ्य ॥ जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु मनुष्यो की ताकत को खीच लेती है उसी प्रकार हेमन्त और शिशिर ऋतु ताकत की वृद्धि कर देती है, क्योकि सूर्य पदार्थों की ताकत को खींचने वाला
और चन्द्रमा ताकत को देने वाला है, शरद् ऋतु के लगते ही सूर्य दक्षिणायन हो जाता है तथा हेमन्त में चन्द्रमा की शीतलता के बढ़ जाने से मनुष्यों में ताकत का बढना प्रारभ हो जाता है, सूर्य का उदय दरियाव में होता है इसलिये बाहर ठढ के रहने से भीतर की जठराग्नि तेज होने से इस ऋतु में खुराक अधिक हज़म होने लगती है, गर्मी में जो सुस्ती
और शीतकाल में तेजी रहती है उस का भी यही कारण है, इस ऋतु के आहार विहार का सक्षेप से वर्णन इस प्रकार है:--
१जिस की जठराग्नि तेज हो उस को इस ऋतु में पौष्टिक खुराक खानी चाहिये तथा मन्दाग्निवाले को हलकी और थोडी खुराक खानी चाहिये, यदि तेज अग्निवाला पुरुष पूरी और पुष्टिकारक खुराक को न खावे तो वह अमि उस के शरीर के रस और रुधिर आदि को सुखा डालती है, परन्तु मन्दाग्निवालों को पुष्टिकारक खुराक के खाने से हानि पहुँचती है, क्योंकि ऐसा करने से अग्नि और भी मन्द हो जाती है तथा अनेक रोग उत्पन्न हो जाते ह ।
२-इस ऋतु में मीठे खट्टे और खारी पदार्थ खाने चाहिये, क्योंकि मीठे रस से जब कफ बढ़ता है तब ही वह प्रबल जठराग्नि शरीर का ठीक १ पोषण करती है, मीठे रस के साथ रुचि को पैदा करने के लिये खट्टे और खारी रस भी अवश्य खाने चाहिये। __३-इन तीनों रसों का सेवन अनुक्रम से भी करने का विधान है, क्योंकि ऐसा लिखा है-हेमन्त ऋतु के साठ दिनों में से पहिले वीस दिन तक मीठा रस अधिक खाना चाहिये, बीच के बीस दिनों में खट्टा रस अधिक खाना चाहिये तथा अन्त के वीस दिनों में खारा रस अधिक खाना चाहिये, इसी प्रकार खाते समय मीठे रस का ग्रास पहिले लेना चाहिये, पीछे नींबू, कोकम, दाल, शाक, राइता, कढ़ी और अचार आदि का ग्रास लेना चाहिये, इस के बाद चटनी, पापड और खीचिया आदि पदार्थ ( अन्त में) खाने चाहिये, यदि इस क्रम से न खाकर उलट पुलट कर उक्त रस खाये जावे तो हानि होती है, क्योंकि शरद् ऋतु के पित्त का कुछ अश हेमन्त ऋतु के पहिले पक्षतक में शरीर में रहता है इस लिये पहिले खट्टे और खारे रस के खाने से पित्त कुपित होकर हानि होती है, इस लिये इस का अवश्य स्मरण रखना चाहिये।
४-अच्छे प्रकार पोषण करनेवाली (पुष्टिकारक ) खुराक खानी चाहिये । ५-स्त्री सेवन, तेल की मालिश, कसरत, पुष्टिकारक दवा, पौष्टिक खुराक, पाक, धूप