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चतुर्थ अध्याय ॥
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बहुत स्थूल शरीर वाले तथा बहुत खाने वाले के लिये चाय और काफी का पीना अच्छा है, दुबले तथा निर्बल आदमीको यथाशक्य चाय और काफी को नहीं पीना चाहिये तथा बहुत तेज भी नहीं पीना चाहिये किन्तु अच्छीतरह दूध मिलाकर पीना चाहिये, हलकी रूक्ष और सूखी हुई खुराक के खानेवालो को तथा उपवास, आविल, एकाशन और ऊनोदरी आदि तपस्या करने वालो को चाय और काफी को नहीं पीना चाहिये यदि पियें भी तो वहुत ही थोडी सी पीनी चाहिये, प्रात काल में पूड़ी आदि नाश्ते के साथ चाय और काफी का पीना अच्छा है, पेट भर भोजन करने के बाद चार पाच घटे वीते विना इन को नहीं पीना चाहिये, निर्बल कोठे वाले को बहुत मीठी बहुत सख्त उबाली हुई तथा बहुत गर्म नहीं पीनी चाहिये किन्तु थोडा सा मीठा और दूध डालकर कुए के जल के समान गर्म पीनी चाहिये, इन दोनों के पीने में अपनी प्रकृति, देश, काल और आवश्यकता आदि बातो का भी खयाल रखना चाहिये, वास्तव में तो इन दोनों का भी पीना व्यसन के ही तुल्य है इस लिये जहातक हो सके इन से भी मनुष्य को अवश्य वचना चाहिये ॥
अन्नसाधन- - समवाय हेतु में जो २ गुण हैं वे ही गुण उस समवायी कार्य में जानने चाहियें अर्थात् जो २ गुण गेहूं, चना, मूग, उडद, मिश्री, गुड, दूध और वृरा आदि पदार्थों में है वे ही गुण उन पढार्थों से बने हुए लड्ड, पेड़े, पूडी, कचौरी, मठरी, रबड़ी, जलेवी और मालपुए आदि पदार्थों में जानने चाहियें, हा यह बात अवश्य है कि- किसी २ वस्तु में सस्कार भेद से गुण भेद हो जाता है, जैसे पुराने चावलो का भात हलका होता है परन्तु उन्हीं शालि चावलों के बने हुए चिर चे ( सम्कार भेद से ) भारी होते है, इसी प्रकार कोई २ द्रव्य योग प्रभाव से अपने गुणों को त्याग कर दूसरे गुणो को धारण करता है, जैसे- दुष्ट अन्न भारी होता है परन्तु वही घीके योग से बनने से हलका और हितकारी हो जाता
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यद्यपि प्रथम कुछ आवश्यक अन्नों के गुण लिख चुके है तथा उन से बने हुए पढ़ाथों में भी प्रायः वे ही गुण होते है तथापि सस्कार भेद आदि के द्वारा बने हुए तज्जन्य पदार्थों के तथा कुछ अन्य भी आवश्यक पदार्थों का वर्णन यहा सक्षेप से करते हैं:
भांत - अग्निकर्त्ता, पथ्य, तृप्तिकर्त्ता, रोचक और हलका है,
परन्तु विना धुले चावलो का भात और विना औटे हुए जल में चावलों को डाल कर पकाया हुआ भात शीतल, भारी, रुचिकर्त्ता और कफकारी है ॥
दाल --- विष्टभकारी, रूक्ष तथा शीतल है, परन्तु भाड में भुनी हुई दाल के छिलको को दूर करके बनाई जावे तो वह अत्यन्त हलकी हो जाती है ॥
१ - इस के बनाने की विधि पूर्व लिख चुके है |