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________________ २५० जैनसम्मवामशिक्षा ॥ विशेष गुण समझते हैं वे उस में मिछकुल नहीं हैं इसलिये पावश्मकता के समय में दूष मौर दूरा मावि के साम इस को थोड़ा सा पीना चाहिये, प्रतिदिन नाम का पीना तो वर माल खानेवाले अंग्रेज और पारसी भादि लोगों के लिये अनुकूल हो सकता है किन्तु जो योग प्रतिदिन भी का वचन तक नहीं कर सकते हैं सिर्फ स्मौहार आदि को बिन को पी का दर्शन होता है उन के लिये प्रतिदिन चाय का पीना महा हानिकारक है, नाम के पीने की अपेक्षा सो यमाशक्य आरोग्यता को कायम रखने के लिये प्रतिदिन स्वयं दूध पीना चाहिये तथा बच्चों को पिलाना चाहिये || फाफी - चाय के समान एक दूसरी वस्तु काफी है जो कि मरण स्थान से यह भाती है, चाम और काफी दोनों का गुण मायः मिलता हुआ सा है, यह एक वृक्ष का बीच है इस को यूव बाना भी कहते हैं, बहुत से लोग इस के दानों को सेक कर रख छोड़ते हैं और भोजन करने के पीछे सुपारी की तरह जान कर मुँह को साफ करते हैं, इस के दानों को सेकने से उन में सुगन्ध हो बाती है और ये एक मसालेदार भीज के समान वन आते हैं, इस के दानों में सिर्फ एक भाग गुणकारी है, एक माग स्वड्डा है, माड़ी का सबभाग ककुमा और करनी करनेवाला है, इस के कचे दाने बहुत दिनों तक रह सकते हैं अर्थात् बिगड़ते नहीं है परन्तु सेके हुए अथवा दले हुए बानों को बहुत दिनों तक रखने से उन की सुगन्धि तथा स्वाद जाता रहता है। शरीर में गर्मी और व चाम की अपेक्षा काफी अधिक पौष्टिक सभा शक्तिदायक है परन्तु वह मारी है इस किये निर्वस और बीमार आदमी को नहीं पचती है, काफी से नता भाती है शीव धातु में तथा शीत देशों में यात्रा करते समय तो शरीर में गर्मी रहसकती है । यदि काफी पी जाये काफी के चूर्ण की भैसी बना कर पतीली के उगलते हुए जल में डाल कर पोच सात मिनट तक उसी में रख कर पीछे उतारने से काफी तैयार होमाधी है, नाम धमा अफी में बहुत मीठा डाल कर पीने से निर्बल फोटे वाले को भवश्य हानि पहुँचती है इस खिये इन दोनों में थोड़ा सा ही मीठा डाल कर पीना चाहिये । फाफी के पानी में घोषा भाग दूध पीने से पाचनशक्ति कम पदवी दे तथा काफी गर्मी पैदा कर नींद का मात्र किन्तु आवश्यकता हो सब इसे पास काल में ही पीना चाहिये, हो यदि किसी कारण से किसी को रात्रि में निद्रा से बचना हो सो भसे दी उसे शव में फाफी पी लेनी चाहिये, जैसे किसी ने विष खाया हो तो उस को रात्रि में नींद से बचाने के लिये भर्वाद जागूव (जागता तुमा ) रसने के लिये बार २ फाफी पिलाया करते हैं । डालना चाहिये, इन धातु में भी हानि करती है इसलिये इसे दोनों भीखों को बहुत गर्म पहुँचती है। इस गर्म देश में रात को नहीं पीना चाहिये
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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