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________________ २१८ जेनसम्प्रदायशिक्षा ॥ हुआ दूध भारी हो जाता है इसलिये यह दूध नहीं पीना चाहिये किन्तु वीमारों में तमा मन्दपाचन शक्तिवासों को दूध में गले हुए पानी के तीन हिस्से बळ मावे तमा एक हिस्सा रह मावे उस दूप का पीना फायदेमन्द होता है, मौटाने के द्वारा भधिक गाा किमा हुभा दूप महुत ही भारी तमा सकिमद है परन्तु यह फेनर पूरी पाचनपछि मालों को तबा फसरती बवानों को ही पच सकता है। सराप दूध–विस दूप का रंग और खाद बदल गया हो, सा पर गया हो, दुर्गन्धि माने जगी हो और उसके ऊपर फेन सा मैंष गया हो उस वूष को सरान हो गमा समझ लेना चाहिये, ऐसा दूध कमी नहीं पीना चाहिये क्योंकि ऐसा खूप हानि करता है, वुहने के तीन पड़ी के पीछे भी यदि दूध को गर्म म किया जाने वो पा शनि कारक हो जाता है इस दूम को मासा वूप मी माना गया है, यदि वुहा हुमा दूध दुहने के पीछे पांच पड़ी तक का ही पड़ा रहे और पीछे सामा जाने तो वा अवश्य विकार करता है मर्मात् वह भनेक प्रकार के रोगों का हेतु हो जाता है, वूष के विषय में एक आचार्य का पर भी कथन है कि-'गर्म किया हुमा भी दूप दश पड़ी के माव बिगर जाता है, इसी प्रकार बैन भक्ष्माभक्ष्य निर्णयकार ने भी कहा है कि-'दुइने के सात घण्टे के बाद दूप (चाहे बह गर्म भी कर लिया गया हो समापि) ममक्ष्म हो माता है, और विचार कर देखने से यह माव ठीक भी प्रतीत होती है क्योंकि सात घण्टे के बाद वूष भवन सहा हो जाता है, इस स्पेि दाने के पीछे या गर्म करने के पीछे बहुत देर तक वूम को नहीं पड़ा रमना चाहिये। प्रात कार का दूध सार्यकास के पूप से कुछ मारी होता है, इस का कारण यह है कि रात को पशु पस्ते फिरते नहीं है इस लिये उनको परिभम नहीं मिला है और रात ठढी होती है इसलिये मात काल का दूप मारी होता है तथा सार्यकाल का वूम मात ग्रह के दूध से हसका होने का कारण यह है कि दिन को सूर्य की गर्मी के होने से भौर पशुभौ को पम्ने फिरने के द्वारा परिमम माप्त होने से सायंकासम वूम हलका होता है, इस से यह मी सिद्ध होता है कि-मदा पि एनेपाछे पशुभों का वूप मारी भौर पतने फिरनेवाले पशुमों का दूप सफा सपा फामदेमन्द होता है, इसके सिवाय दिन की बायु तथा कफ की प्राप्ति के उन गंगों ने तो सामकारका दूपही मषिक भनुस भाता है। 1- स पनायत सिमान्त में पुराने से परीके पार करेपरप्रेममा पापा मि मरस गम, सार भर कर बस गया से पनी साने पीने समदी ने मा इसलिये मार मा भगवास पब मालमते में रपम चाहिये बोल ऐसा भमस्स पर भास ही रोक पानाम रोधी
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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