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________________ २.० बैनसम्प्रदायशिक्षा । मपपि देश, काल, समान, मम, शरीर की रचना और भवसा आदि के अनेक मेदों से पराक के मी भनेक भेद हो सकते हैं समापि इन सब का वर्णन करने में अन्नविसार का मम पिपार कर उनका वर्णन नहीं करते हैं किन्तु मुख्यतया यही समझना चाहिये जिराफ का भेद केवल एक ही है मर्मात् विस से भूख और प्यास की निवृधि हो उसे खुराक करते हैं, उस चुराक की उत्पचि के मुस्म को हेतु हैं-सारर भौर चाम, साबरों में तमाम बनस्पति और बजाम में मापियन्म दूप, दही, मसन और छाछ (मा) भावि सुराक बान लेनी चाहिये। नसूमों में उस माहार वा खुराफ पार भेद मिखे हैं-मसन, पान, सादिम मौर साविम, इनमें से खाने के पदा मशन, पीने के पदार्थ पान, पाव कर खाने के पदार्थ साविम मोर पाट पर लाने के पदार्थ लादिम कागते हैं। अपपि भाहार के बहुत से प्रकार अर्थात् भेद है तथापि गुणों के अनुसार उक माहार के मुरूम पाठ मेव --मारी, चिकना, ठंग, फोमन, हलका, रूस (ससा), गर्म मौर तीक्ष्म (सेम), इन में से पहिसे चार गुणोंगाम महार श्रीववीर्य है और पिछले पार गुणोपाला माहार उप्मवीर्य है । माहार में सित जो रस है उसके छ मेव हैं-मधुर ( मीठा ), सम्म (सहा), मम (सारा), रुद्ध (तीसा), सिक ( मा) और कपास (कला), इन छ' रसों के प्रमा पसे माहार के २ मेव-पथ्य, अपम्प भौर पस्यापम्प, इन में से हितकारक भागार ने परम, महितकारक (एनिकारक) को मपम मौर हिस सपा महित (दोनों) के करने वाले बाहार को पथ्यापथ्य कहते हैं, इन तीनों प्रकारों के बाहर का वर्णन विस्तार पूर्मक भागे फिमा बेगा। इस प्रकार भादार के पदार्थों के अनेक सूक्ष्म मेद हैं परन्तु सर्व सापारम के लिये रे विशेप उपयोगी नहीं है, इस म्मेि सूक्ष्म मेदों प्रविचन कर उनका पर्यन रना बना बश्यकते, ही मेधक छ. रस मोर पथ्यापथ्य पदार्थ सम्पपी मावश्यक विपमका मान सेना सर्व सामारण केम्मेि हितकारक है, क्योंकि जिस सुराकको हम सम साते पीवे है उसकेजदे २ पदायों में जवा २ रस होने से कौन २ सा रस मा २ गुण रसता है, क्मा २ किया करतारेभोर मात्रा से भमिक खाने से फिस २ विकार को उत्पन करता है भीर हमारी सराफ के पवायों में न २ से पदार्थ पम्पसमा कोन २ से पपम्म इन सब बातों का जानना सर्व सापारण को मावश्यक है, इसटिये इनके विषय में रितारपूर्वक वर्णन किया जाता है १-देषो । पमापन पर्पननामा म्म प्रारम।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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