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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ १९९ अनुकूल ही शरीर को श्रम देवें क्योंकि ऐसा करने से अधिक हानि का संभव नहीं रहता है, परन्तु यह भी स्मरण रखना चाहिये कि-सदा एक ही प्रकार की खुराक को खाते रहना भी अति हानिकारक होता है। खुराक ऐसी खानी चाहिये कि-जिस में शरीर के पोषण के सव तत्व यथायोग्य मौजूद हो, अपने लोगों की खुराक सामान्य रीति से इन सब तत्वो से युक्त होती है क्योंकि शुद्ध अन्न और दाल आदि पदार्थों में शरीर के पोषण के आवश्यक तत्व मौजूद रहते हैं, परन्तु प्राणिजन्य खुराक अर्थात् घी मक्खन और मास आदि पदार्थों में आटे के सत्ववाला तत्व अर्थात् गर्मी को कायम रखनेवाला तत्व बिलकुल नहीं होता है, हां इस प्रकार की (प्राणिजन्य ) खुराक में केवल दूध ही सब तत्वो से युक्त है, इसी लिये अकेले दूध से भी बहुत दिनों तक मनुष्य का निर्वाह होसकता है। घी में केवल चरवीवाला तत्व है, परन्तु उस में पौष्टिक आटे के सत्ववाला तथा क्षार का तत्व बिलकुल नहीं है, चावलों में बहुत सा भाग आटे के सत्वका है और पौष्टिक तत्व प्रति सैकड़े पाच रुपये भर ही है, इसी लिये अपने लोगों में भात के साथ दाल तथा घी खाने का आम ( सामान्यतया) प्रचार है । ___वालकों के लिये चरवीवाले तत्व से युक्त तथा अति पौष्टिक तत्व से युक्त खुराक उपयोगी नहीं है, किन्तु उन के लिये तो चॉवल दूध और मिश्री आदि की खुराक बहुत अनुकूल हो सकती है, क्योंकि इन सब पदार्थों में पौष्टिक तत्व बहुत कम है और गर्मी लानेवाला तत्व विशेष है और बालकों को ऐसी ही खुराक की आवश्यकता है, गेहूँ में चरबी का भाग बहुत कम हैं इस लिये गेहूं की रोटी में अच्छी तरह घी डाल कर खाना चाहिये, बाजरी तथा ज्वार में यद्यपि चरबी का भाग आवश्यकता के अनुसार मौजूद है तथा पौष्टिक तत्व गेहूं की अपेक्षा कम है तथापि इन दोनो पदार्थों से पोषण का काम चल सकता है, अन्नों में उड़द सब से अधिक पौष्टिक है इसलिये शीत ऋतु में पौष्टिक तत्ववाले उड़द के आटे के साथ गर्मी देनेवाला घी तथा मिश्री का योग कर खाना बहुत गुणकारक है, गर्म देश में ताज़ी शाक तरकारी फायदा करती है, अपना देश गर्म है इस लिये यहा के निवासियों को ताजी वनस्पति फायदा करती है, इसी कारण से शीत ऋतु की अपेक्षा उष्ण ऋतु में उस ( ताजी वनस्पति) के विशेष सेवन करने की आवश्यकता होती है, चरबीवाले और चिकनासवाले भोजन में नींबू की खटाई और थोड़ा बहुत मसाला अवश्य डालना चाहिये ।। १-यह बहुत ही उत्तम प्रचार है क्योंकि-दाल से पौष्टिक तत्व पूरा हो जाता है और दाल मे नमक के होने से चॉवलों में क्षार की जो न्यूनता है वह भी पूरी हो जाती है और घी से चरवीवाला तत्व भी मिल सकता है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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