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( १७१ ) जब पहिलो वधु ने शेठ जी के हाथों से पांच धान्पों को ले लिया और वाहिर आने पर उम ने विचार किया कि-शेठ जी बृद्ध हैं न जाने इन के कैसे २ संकाय उत्पन्न होते रहते हैं क्या हमारे घर में धान्यों की कमी है। जिस समय शेठ जी मेरे से धान्य पांगेंगे तन में अपने कोठों से निकाच कर पांच ही धान्य शेठ जी को दे दनी फिर उप ने ऐसा विचार करके उन पांचों धान्यों को वहां ही गेर दिया।
जो दूसरी वधु को पांच धान्य दिये थे उस ने भी पहिली की तरह उन पर विचार किया, किन्तु वह धान्य गेरे तो नहीं अपितु छील कर खा लिये। . तीसरी वधु ने सोचा कि जब इन धान्यों के वास्ते इस प्रकार हमें शेठ जी ने पुला कर दिये हैं तो इस से सिद्ध होता है कि-इस में कोई न कोई कारण अवश्य
इस लिये इन की रक्षा करनी चाहिये । तव उस ने अपने रत्नों की पेटो में उन पांचों धान्यों को रख दिया इतना ही नहीं किन्तु पन की दोनों समय 'रता करने लग गई।