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(१५) मापके सिवाहा सपना रदिया भी कि पापको बिना पण मावा विवा की मासा का पालन करना पड़ा, मर्याद ग्नों न माप का शियाख कोट में बाबा हीरा ताब (संह पाले) मोसपास की पर्म पस्मी भी मवी भास्पा देवी भी दी पुषी भी मवो गाला देगसाब पाणी ग्राण रवा दिया।
नप माप का पियाा संस्कार भी हो गया परन्तु पर्म में माप माप मोर मी पड़वे गोबिन्त भागापसी दो माप से भाप का संसार में ही एए समपर गाना पड़ा मार बागियों में एक परिव बोरी पे. मापापुष उत्पम । रगों का माप ने दिपार संस्कार किया फिर पाप मार संपम में प्रदीप बह गये।
तर सम समप पंसार देश में भी रामजात बी महाराम धर्म प्रचार कर रो पे माप के भाष ग्नरे पास सपा ने कहा मये । मावा पिता का सर्ग पास हो हो चुका पा, तब भाप में अपनी दुकान पर पाप गुमास्त विठसार, भौर पम पम नियम