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आपके पिता जी जवाहरात की दुकान करते थे
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उस समय पंजाब देश में महाराजा " रणजीत सिंह जी
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के राज्य तेज से बहुतो जातिया में सिंह नाम की चली हुई थी। बाल्यावस्था के अति क्रम हा जाने पर अति निपुण हो गये विद्या में भी अति प्रवीण हुये । नामक शहर में १८६२ वैशाख कृष्णो द्वितीया के दिन' ताला बुद्ध सिंह ओसवाल ( भावड़े ) सत्तड गोत्री की धर्मपत्नी श्रीमती फर्मो देवों की कुति में हुआ था । लाला मोहर सिंह, और ताला मेहर चन्द्र, यह दोनों आप के बड़े भाई थे आप का परस्पर प्रेम भाव उन्हों के साथ अधिक था, जब यौवनावस्था के आये तब आपको पूर्व कर्मों के क्षयों पशम भाव से राय उत्पन्न हो गया, सदैव काल यही भाव आप अपने म में भावने लगे कि मैं जैन दीक्षा लेकर धर्म का प्रचार हरू जो लोग अन्ध श्रद्धा में जा रहे हैं उन को सुपथ में
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लाऊ ।
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जब आप के भाव यति उत्कट हो गये तब आप के माता पिता ने आपके इस प्रकार के भावों को जान कर
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