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( १४ ) बारहवाँ पाठ।
(श्राविका विषय ) पिय मुज्ञ पुरुषो ! जैसे जैनमत में श्रावक को धर्माधिकारी बतलाया है वा श्रावक को चारों तीर्थों में एक तीर्थ माना गया है तथा जैसे द्रव्य तीर्थ के स्नान से शारीरिक मल दूर होजाता है उसी प्रकार श्रावक वा श्राविका रूप तीर्थ के सग करने से जीव पापों से छुट जाते हैं।
जब श्रावक बारह व्रतों का धारी होता है कि की धर्मपत्नी भी बारह व्रत ही धारण करने तब धर्म की साम्यता होने पर उनके दिन आनन्द पूर्व व्यतीत
श्राव और श्राविकाओं को अन्य द्रव्य तीर्थों की यात्रा करने की बावश्यकता नहीं है चिन्तु उनसे वडे जो और दो तीर्थ हैं वे आनन्द पूर्वक उनकी यात्रा कर हते है जैसे कि-साधु और साध्वी-इनके दर्शनों से