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________________ ( १३६) का सम्बन्ध है तव सिद्ध हुआ कि-यह दोनों प्रवाह से मनादि हैं प्रथम कौन है । इस प्रकार नहीं कह सकते। इस प्रकार रोह अनगार ने अनेक प्रश्नों को पूछा श्रीमगंवान् ने उनके सर्व सशयों को दूर किया । एक समय श्री गौतम स्वामी ने श्रीभगवान से प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! गर्भावास में जीव इन्द्रिय लेकर भाता है वा इन्द्रिय छोड़ कर गर्भावास में जीव प्रविष्ट होता है तब श्रीभगवान् ने प्रतिउत्तर में प्रतिपादन किया कि-हे गौतम ! इन्द्रियों को लेकर भी आता है छोड़ कर श्री माता है तव श्री गौतम प्रभुजो ने फिर- शंका की बिहे भगवन् ! यह कथन किस प्रकार से है तब श्रीभगवान् ने फिर उत्तर दिया कि-हे गौतम द्रव्य पटियों को जीव छोड़ कर पाता है और भावेन्द्रियों को तारूप ) को जीव लेकर भ्राता है जिसके द्वारा फिर ज्य इन्द्रियों की निष्पत्ति होजाती है गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया कि-हे भगवन् । जीव शरीर को छोड़ कर गर्भावास में आता है वा शरीर को लेकर गर्भावास में भाता है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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