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( १३५) भगवान महावीर स्वामी और
अहिंसा का प्रचार। जिस समय भगवान् महावीर व स्वामी का सत्यप्रयी और संसार में शान्ति लाने वाला सच्चा अहिंसक धर्म फैलने लगा तब उस समय के ब्राह्मण लाग जो हिंसा में ही धर्म मानते थे जिन के यहां यज्ञ काना ही केवल महान् धर्म सब के लिये वताया गया था भोर उन यज्ञों में घोर हिंसा यानी पशु वध जो होता था का धर्मानुकूल समझा जाता या धौर देश में उस समय जिधर भी देखो यज्ञों ही यज्ञों का जोर होने से हिंसा ही हिंसा की इतनी प्रबलता थी कि मानो खून की नदिया वा रही थीं इस अवस्था को देख का भगवान महावीर स्वामी का हृदय कांप उठा और उन्हों ने इस का विराध अति लोर शोर से फरना प्रारंभ किया और उन शाजाओं ने भी जिनको कि आपने धर्म उपदेशामुना कर अपने अनुयायी कर लिये थे उन्होंने भी हिंसा प्रचार बहुत ही किया किन्तु आपने उन यज्ञों में होम होते हुये लासों पशुओं को बचाया जिस को फल यह हुमा कि