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महाराजा के एक "नन्दि बर्द्धन" नाम वाला कुमार 'बामा ७२ कलाओं में निपुण और राज्य की धुरा को मेम से उठाए हुए था इसी कारण वह "युवराज" 'पदवी का भी धारक था और उस की एक कनिष्ठा भगिणी "सुदर्शना” नामा थी' जो शीलवती और सुशीला थी, “महाराजा सिद्धार्थ" श्री भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु के मुनियों के श्रावक थे, और श्रावक वृत्ति को ममता पूर्वक पालन करते थे ।
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एक समय की बात है कि महाराणी " त्रिशला " जब अपने पवित्र राज्य भवन के वास भवन में सुखशय्या में सांई पड़ी थी, तब अर्धरात्रि के समय पर महाराणी ने १४ स्वम देखे जैसे कि
,,हाथी १ वृषभ २ सिंह ३ लक्ष्मी देवी ४ पुष्पों की माला ५ चन्द्रमा ६ सूर्य ७ ध्वजा फल सरोवर १० चोर समुद्र ११ देव विमान १२ रत्नों की राशि ९३ अग्नि शिखा १४" । जब राणी जी ने इन चतुर्दश स्वप्नों को देख लिया तब उसकी भांख खुल गई फिर वह अपनी शय्या से उठकर महाराजा सिद्धार्थ के पास गई