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( १९." किन्तु मो प्रम्पप पुस २ रनपा अपएस पाद विशेष पन पोग्य सापही जो गास्प माप (नाम)मा (सरप) साविक गम है ये कमी मी माविष्ठापी हानि
वाला मनुमय मी करत मो इन बातो काविचार कम रमने हैमस्विम दासों की मनमारते। पौर पम से मा रमकी रषि कम हो जाती है प्रव एष ! ममणोंप सी के पास साथ ही अनेक मौर गुणों के पारस रन की पावरकवा है।
नर एसो ा समा इमारो पाएमा, वारे पपेर मुसों दी पाप्ति कर सकेंगे, पापप ! सिर इमा -रा, प्रावि, मोर पर्मी , पडी सेवा कर सकता
जो परिसे अपन एणो (सम्पा) से मानवा हो-मा सपनवेम्पों का भाम र परिकी प्रवरपको सेवा करनी पाए।