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(०.११६ ) गये कार्यों की अनुमोदन करना यही अधर्म दान है। सो-धर्मदान करना सस्थों को मुख्य धर्म है शत्पुव! सम्पलक्ष गुण पाला गृहस्य को अवश्य ही हाना
और गृहस्थों का यह भी नियम शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि-न्याय से लक्ष्मी उत्पन्न करते हुए गृहस्यों के योग्य है कि-पदि वे अपने समान कुल में विवाह करते है तब तो वे शान्ति से जीवन व्यतीत कर
सकते हैं नहीं सो प्रायः अशान्ति उनकी बनी रहती है 'वथा देशाचार को जो नहीं छोड़ता है वह भी धर्म से पराकमुख नहीं हो सकता---यह बात मानी हुई है किजिस देश की भाषा पा वेष ठीक रहता है वह देश उन्नति के शिखर पर जा पहुंचता है, जिसकी भाषा
और देष विगढ़ जाता है इस देश की उन्नति के दिन पीछे पड़ जाते हैं,
जो गृहस्थ देश धर्म को ठीक प्रकार से समझते हैं धे भुत बा चारित्र धर्म को भी पालन कर सकते हैं।
फिर किसी के भी अवगणवाद नबोलने चाहिए