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( १०४ ) साहब मैं चारी उस को मानता हूँ, यदि एषः दिन ज्वर आप को चढ़ जाए और एक दिन मुझे च: जाए, जब ऐसे हो जाए तो मैं वारी मानंगा, इतनी बात सुन कर डाक्टर साहव हंस पड़े, इससे सिद्ध हुषा कि मूर्ख किसी का नाम नहीं है जो हित की बात नहीं समझता वही मूर्ख है-गृहस्थ को दाक्षिणए होना चाहिये।
8-लज्जालु-अकार्यों से लज्जा करने वाला, पाप कर्म करते समय लज्जा करनी चाहिये, लज्जा से ही गुणों की पाप्ति हो सकती है जो पुरुष निर्लज्ज होते हैं वे पाप कर्मों में प्रवेश कर जाते हैं, इस लिए! माता, पिता, गुरु, स्थविर (बृद्ध) इत्यादि की लज्जा करनी चाहिये, पापों से वचनी चाहिए, पुरुषों और स्त्रियों की लज्जा ही प्राभूषण है इसी के द्वारा धर्म पंक्ति में आसकते हैं काम विगडते हुओं को लज्जा वाला पुरुष ठीक कर सकता है अतएव सिद्ध हुमा लज्जा करना सुपुरुषों का मुख्य कर्तव्य है।
१०-दयालु-दया करने वाला त्रस और स्थावरों की सदैव रक्षा करने वाला इतना ही नहीं किन्तु जो