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________________ (1 ) केमिने भावे और इनी मणों से रूपपान का बाणा है परन्तु वास्तव में सीव मण ही प्रमाम मामा मावा । माएर ! या गुण भपरप ही धारण करने चाहिये। ३मकृवि सौम्प-स्वमाष से शुभ दप पाता होमे-पोजिमा प्रापार ( भागम )ीक होगा तप ही उस में मुम निराम पर सकते हैं-मिन की प्रकृति कठिन मा कठिन है ये कदापि धर्म के पाग्य नहीं है। सम्वे-मण भूमि में । शुद्ध पीन की उत्पत्ति हो सती है जो भूमि मशयो रस में गुदमीम भी मेकर मरोंद सकता इसी प्रकार मिस भारमा र दप शुद मावि सोम्य है यही गुणों का मामन हो साचार मैस पराभों में मो-पय-मादि बीर टिच मावि पान नाकारण लामों मेम २ पाप न माव? और गिस (श्यास ) बापड़ी पिचा प्रादि भोप सरल भौर सौम्प पति पाखे म हाने से पेरिसास पात्र नरीत भए । प्रकृति सौम्प मारप ही मी पाए। हारिप-अपन गणों द्वारा बोर में मिपमा वीर पोंरि-पिप अप परने वाला और मित्र
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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