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दशवां पाठ।
(श्रमणो पासक विषय )। प्रिय सुज्ञ पुरुषो ! इस भसार संसार में सदा चार ही जीवन है सदा चार से ही सर्व गुणां की प्राप्ति हो सकती है जिस जोव ने सदा चार को मित्र नहीं बनाया उस का जीवन इस संसार में भार रूप ही होता है,, क्योकि-यदि सदा चार से रहित जीवन है तो उस का जीवन पशु के समान ही होता है।
खान, पान, भोग, शीत, उष्ण इत्यादि जा पशु कष्ट सहन करते हैं वही कारण सदा चार स पतित जीव को मिल जाते हैं आदर्श रूप वही जीव बन सकता है जो सदा चार से अलंकृत हो, जिस का जीवन पवित्र नहीं है, उस का प्रभाव किसी पर पड़ नहीं सकता, धर्म पथ से भी वह गिर जाता है, लोग उस को मुष्टि स नहीं देखते हैं। . .
अतएव ! मनुष्यों के जीवन का सार सदा चार ही * संसार पक्ष में अनेक प्रकार के सदा चार होने पर भी