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श्रीमविजयानंद सूरि कृत.
अथ पद. राग-वरवा. ऐसे तो विषम बाजी। पियाको उमाद जागी ॥ जैसी आवे अन मेरेकी जाये अघ ध्वसरी ॥ऐ॥१॥ लोहको सिरोद सुन कूदत जश्कारी । नादकेव जय बावे तो हरन लागे हंसरी ॥ऐ ॥३॥ चितढूंकी सार ग मारहूंने तार दस करहो हंस वंस निकल पाई जसरी॥ ऐ॥३॥ शैली श्रावे मन मेरे बदन वन बेद जारुं । प्रगटे श्रानंद कंत जारी, बाजी संसरी ॥ ऐ॥४॥ इति ॥
'श्रथ पद. राग-वसंत. [ हमकुं गंग चले बन माधो] ए दे.. अब क्युं पास परो मनहंसा, तुम चेरे जिननाथ खरेरे । जारमार ममता दढगंन राग स्निग्ध अभ्यंग करेरे ॥ अब ॥१॥ जव तरु मार ताण विस्तरीया,