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________________ एव श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, अथ पद. राग-न्नेरवी. मेरी क्याही बेदरदी रही । मे॥तोरे नाथसे घर नावसाय ॥ मे ॥ १॥ मेंतो मूर हती नतो मैं रही जग जाम कातो अब हो रही ॥ तो ॥२॥ हूंतो ढुंढ रही न तो यार मिला ॥ अब काल अनंतोही रोय रही। तो ॥३॥ नतो मीत विवेक न धर्म गुनी । अब सीस धुनी हूंतो बेउ रही ॥ तो ॥४॥ हूंतो नाथही ना. थ पुकार रही। कुमता जर जारही जार रही ॥ तो ॥५॥ तूतो श्राप मिला मन रंग रला । अब आनंदरूप श्राराम ल.. ही ॥ तो ॥६॥ अथ पद. राग-वसंत. [ हमकु चले बन माधो ] ए देशी. तुं क्युं जोर जये शिवराधो । वाधा मोच करो मनमारे ॥ तुं श्रांकणी ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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