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________________ ए५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, न, मुख फेर देखावोरे ॥ नव ॥१॥ तुम बोडी अब जात कडं, में नही बोडत घर न रहुं । जोगन वनी तुम संग चढुं, नीज ज्योती जगावोरे ॥ नव ॥ २॥ बातम वेर न कुमती बुं, रागष मदमोह दर्बु । सुगती नगर तुम संग चर्बु, नीज जोर जनावोरे ॥ नव ॥ इति ॥ अथ श्री नेम जिन स्तवन. श्रावो नेम सुख चेन करो, जुख काही देखावोरे ॥ आंकणी ॥ वीरह तुमारो अतीही कठन, सही न शकुं पल एक बीन । जगत लाग्यो लव हांसी करन, मत बोजीने जावोरे ॥श्रावो ॥१॥ क-- रूणासिंधु नाम धरन, सुण अनाथके नाथ जीन। रुदन करूं तुम चरन परन, टुंक दया दील लावोरे ॥ श्रावो ॥॥ अडजव सुंदर प्रीत करी, अब क्युं उलटी
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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