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________________ स्तवनावली. यक, लायक सौ न कहाय ॥ जी ॥ अब ॥ २ ॥ जो दायक समरथ नहीं तो कुण, तोकुं मागण जाय ॥ जी ॥ त्रीभुवन कल्पतरु में जाच्यो, कहो केम निष्फल थाय ॥ जी ॥ अव ॥ ३ ॥ अवगुण मानी परी हरे तो, यादी गुणी कोण थाय ॥ जी ॥ पारस लोह दोष नवी माने, करे शुद्ध कंचन काय ॥ जी ॥ श्रव ॥ ४ ॥ श्रतमराम श्रानंदरस पुरण, मुरण समर कषाय ॥ जी ॥ अजर अमर पुरण प्रभु पामी, अब मोए कमी न कांय । जी । अव ॥ ५ ॥ इति ॥ १ अथ श्री नेम जिन स्तवन. क्यों करूं माता मेरी, पंमितके जाकेरी ॥ ए देशी ॥ नव जव केरी प्रीत सजन तुम तोमी न जावोरे ॥ नव ॥ श्रकणी ॥ मुगती रमणीस्युंलागी लगन, मनमें अति वैराग धरना । बोड चले निज साथ सज
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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