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स्तवनावली.
जिन राजा॥१॥चातुर वरणके नरनारी मील मंगल गीत करावे । जयजयकार पंचध्वनी वाजे शिरपर बत्र फिरावेजी । जिन राजा ॥ २॥ हिंसक जन हींसा तजी पूजे चरणे शिश नमावे।तुंब्रह्मातुंहरि शिवशंकर अवर देव नहीं नावेजी ॥ जिन राजा ॥३॥ करुणारस नर नयन कचोरे अमृतरस वरसावे । वदनचंद चकोरे ज्यु निरखी तनमन अति उलसावेजी ॥ जिन राजा ॥४॥ श्रातमराजा त्रिजुवन ताजा चिदानंद मन नावे।मतिजिनेश्वर मनहर खामी तेरा दरस सुहावेजी॥ जिनराजा॥५॥शति॥
अथ चंडप्रनु जिन स्तवन. चाहतथी प्रनु सेवा करुंगी । उलटी करम बनारी ॥ ए देशी ॥ चाह लगी जिनचंड प्रजुकी, मुज मन सुमती ज्यु