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________________ ६२ श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत, रेणुमेरे हुं लोहूं जगदीश । अंहि न बोड्रं तव लगेरे, न करे निज सम ईश ॥ जिनंद ॥ ६ ॥ तमराम तूं माहरोरे, त्रिसलानंदन वीर । ज्ञान दिवाकर जग जयोरे, अंजन पर दुःख जीर ॥ जिनंद ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ राधनपुर बिराजमान चडविस जीन साधारण स्तवन. राग तुमरी. जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे, हुं जक्ति करुं मन रंगे, ज्युं कर्म सुनट सब जंगे, हुं बेसुं शिवपुर डुंगे । जिनंदा ॥ चली ॥ आदि जीन स्वामीरे, तुं अंतरजामीरे, प्रभु शांतिनाथ जिनचंदा, तुं अजर अमर सुखकंदा, तुं नाजिराय कुल नंदा ॥ जिनंदा ॥ १ ॥ चिंतामणी नामेरे, वंबीत पामेरे, जीन शांति शांति करतारा, पाम्यो जव जल
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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